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उत्तराखण्ड

हल्द्वानी- महिला जागरूकता को लेकर दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में किया गया, पढ़िए पूरी ख़बर

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति के तत्‍वाधान में बुधवार को विश्वविद्यालय सभागार में ‘’महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (रोकथाम, प्रतिषेध एवं निवारण)’’ विषय पर दो दिवसीय संगोष्‍ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 ओ. पी.एस नेगी, मुख्य अतिथि, कुसुम कंडवाल, अध्‍यक्ष राज्‍य महिला आयोग, उत्‍तराखण्‍ड, विशिष्ट अतिथि चंद्र शेखर रावत, स्थाई अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, नैनीताल एवं विशिष्ट अतिथि प्रो. आराधना शुक्ला के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन, मंगलाचरण एवं कुलगीत के साथ की गई। सभी अतिथि गणों का पुष्प गुच्छ, स्मृति चिन्ह एवं शॉल देकर स्वागत किया गया।
कार्यक्रम समन्वयक प्रो. रेनू प्रकाश ने सभी अतिथि गणों का स्वागत करते हुए संबंधित विषय की रूपरेखा प्रस्तुत की। कार्यक्रम के संचालक डॉ. डिगर सिंह ने दो दिवसीय कार्यक्रम के चार सत्रों की रूपरेखा प्रस्तुत की।

कार्यक्रम के प्रथम सत्र में विशिष्ट अतिथि चंद्र शेखर रावत, स्थाई अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, नैनीताल ने विशाखा वनाम राजस्‍थान राज्‍य गाइडलाइन एवं अधिनियम-2013 के विषय में बताते हुए इसके गठन के उद्देश्य को समझाया तथा कहा कि केवल महिलाओं को नहीं बल्कि पुरुषों की भी इन विषयों पर जागरूक होने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि केवल कानूनों से इन मुद्दों को नहीं सुलझाया जा सकता बल्कि इसके लिए मनोवृति में भी परिवर्तन लाना होगा। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि कुसुम कंडवाल, अध्यक्ष, उत्तराखंड राज्य महिला आयोग ने बताया कि महिलाओं पर दोहरी जिम्मेदारी होती है और और उन्हें कार्य क्षेत्र में लैंगिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

उन्होंने लैंगिक उत्पीड़न को रोकने के लिए परिवार की भूमिका पर जोर दिया और बताया कि समाज तभी सुधरेगा जब परिवारों को सुधारा जाएगा। उन्होंने विवाह से पूर्व काउंसलिंग कराए जाने की बात कही। कार्यक्रम के अध्यक्ष माननीय कुलपति प्रो. ओ.पी. एस नेगी ने महिला जागरूकता कार्यक्रम एवं आंतरिक शिकायत समिति के गठन की जरूरत के विषय में बात की तथा बताया कि हम अपने संस्कार खोते जा रहे हैं, हमें अंधी दौड़ में भागने से बचना होगा तथा महिलाओं का जागरूक होना आवश्यक है। साथ ही उन्होंने महिला शिक्षा पर मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा एक डिप्लोमा पाठ्यक्रम खोले जाने का भी पक्ष रखा। इस मौके पर डॉ रुचि तिवारी एवं प्रो. आराधना शुक्ला की संयुक्त पुस्तक “कल्चर एंड स्कॉलिस्टक बिहेवियर” का विमोचन भी किया गया। सारस्वत अतिथि प्रो. आराधना शुक्ला द्वारा पुस्तक की रूपरेखा प्रस्तुत की गई। सत्र का संचालन डॉ. डिगर सिंह द्वारा किया गया एवं धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव प्रोफेसर पी.डी. पंत द्वारा किया गया।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र की अध्यक्ष एवं मुख्य वक्ता प्रो. आराधना शुक्ला रही।

सारस्वत वक्ता प्रभा नैथानी ने महिला उत्पीड़न के विधिक पहलू पर बात की। उन्होंने यौन उत्पीड़न को बताते हुए इसके विभिन्न पहलुओं जैसे शारीरिक संपर्क और अग्रिम, यौन एहसान के लिए मांग, अश्लील साहित्य, यौन प्रकृति का अवांछित प्रदर्शन एवं शारीरिक, मौखिक या गैर मौखिक यौन आचरण आदि को समझाया। उन्होंने भंवरी देवी के केस को बताते हुए विशाखा बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान, सेक्सुअल हैरेसमेंट आफ विमेन एट वर्कप्लेस एक्ट -2013, आंतरिक शिकायत समिति एवं इसके विभिन्न प्रावधानों को विस्तृत रूप से समझाया। मुख्य वक्ता प्रो. आराधना शुक्ला ने बताया की हमें ऐसी मुख्य धारा बनाने की जरुरत है जिसमे महिला- पुरुष एक साथ चलें। उन्होनें यौन उत्पीड़न की जड़ पर बात करते हुए वर्कप्लेस में उनकी असुरक्षा की भावना तथा विभिन्न प्रकार के यौन उत्पीड़न पर चर्चा की। उन्होने कहा कि पुरुषों हेतु भी आईसीसी का गठन किया जाना चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर वह भी अपनी बात रख सके। कार्यक्रम का संचालन डॉ. शालिनी चौधरी द्वारा किया गया एवं डॉ0 सीता द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया। इस मौके पर डॉ. कल्पना लखेड़ा, डॉ. नीरजा सिंह , डॉ. दीपांकुर जोशी, प्रो. ए. के नवीन, डॉ. भाग्यश्री, डॉ.विनीता पंत, डॉ. नमिता, डॉ. रुचि, प्रज्ञा दुबे, डॉ. सुनील कुमार त्रिपाठी आदि मौजूद रहे।

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