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उत्तराखण्ड

हल्द्वानी : एक देश एक चुनाव केवल ध्यान भटकाने का भाजपाई मुद्दा है : यशपाल

एक देश एक चुनाव केवल ध्यान भटकाने का भाजपाई मुद्दा है। चुनाव आयोग चार राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं करा पा रहा है, तो यह One Nation – One Election कैसे करा पाएगा। बीजेपी अच्छी तरह जानती हैं कि यह संभव नहीं है। इस Constitutional Amendment को लोक सभा में पारित करने के लिए 362 वोट चाहिए और पूरा NDA मिला कर 293 है। अनुच्छेद 85(2)(ख) के अनुसार राष्ट्रपति लोकसभा को और अनुच्छेद 174(2)(ख) के अनुसार राज्यपाल विधानसभा को पाँच वर्ष से पहले भी भंग कर सकते हैं। अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल लगाकर लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। इसी तरह अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और ऐसी स्थिति में संबंधित राज्य के राजनीतिक समीकरण में अप्रत्याशित उलटफेर होने से वहाँ फिर से चुनाव की संभावना बढ़ जाती है।  ये सारी परिस्थितियाँ एक देश एक चुनाव के नितांत विपरीत हैं।एक देश, एक चुनाव से लोकतंत्र की विविधता और संघीय ढांचे को खतरा बढ़ेगा। लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव का स्वरूप और मुद्दे बिल्कुल अलग होते हैं। लोकसभा के चुनाव जहाँ राष्ट्रीय सरकार के गठन के लिये होते हैं, वहीं विधानसभा के चुनाव राज्य सरकार का गठन करने के लिये होते हैं। एक साथ चुनाव कराने से स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों के सामने दब सकते हैं। क्षेत्रीय मुद्दे राष्ट्रीय राजनीति में खो सकते हैं या राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएँ या इसके विपरीत क्षेत्रीय मुद्दों के सामने राष्ट्रीय मुद्दे अपना अस्तित्व खो दें। लोकतंत्र को जनता का शासन कहा जाता है। देश में संसदीय प्रणाली होने के नाते अलग-अलग समय पर चुनाव होते रहते हैं और जनप्रतिनिधियों को जनता के प्रति लगातार जवाबदेह बने रहना पड़ता है। इसके अलावा कोई भी पार्टी या नेता एक चुनाव जीतने के बाद निरंकुश होकर काम नहीं कर सकता क्योंकि उसे छोटे-छोटे अंतरालों पर किसी न किसी चुनाव का सामना करना पड़ता है। अगर दोनों चुनाव एक साथ कराये जाते हैं, तो ऐसा होने की आशंका बढ़ जाएगी और संवैधानिक बाधाओं की अनदेखी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर कर सकती है। स्थिरता की आड़ में जन प्रतिनिधित्व का ह्रास न होजब सभी चुनाव एक साथ होंगे, तो स्थानीय मुद्दे जैसे पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। राष्ट्रीय मुद्दे अधिक प्रमुख हो जाएंगे, जिससे वोटर अपने स्थानीय प्रतिनिधियों के बारे में सही निर्णय नहीं ले पाएंगे।यह विचार देश के संघीय ढाँचे के विपरीत होगा और संसदीय लोकतंत्र के लिये घातक कदम होगा। लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करवाने पर कुछ विधानसभाओं के मर्जी के खिलाफ उनके कार्यकाल को बढ़ाया या घटाया जायेगा जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। भारत का संघीय ढाँचा संसदीय शासन प्रणाली से प्रेरित है और संसदीय शासन प्रणाली में चुनावों की बारंबारता एक अकाट्य सच्चाई है। इस सिस्टम को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधन करने होंगे, जो एक जटिल प्रक्रिया है। इससे राजनीतिक अस्थिरता भी बढ़ सकती है.मोदी सरकार ने नोटबंदी, GST और किसान कानून समेत तमाम नियम बिना किसी सलाह के लाए थे, वैसे ही यह One Nation – One Election का जुमला बिना किसी की सलाह के लेकर आए हैं। ये संविधान के ख़िलाफ़ और लोकतंत्र के प्रतिकूल है, इसके साथ ही, अगर कोई भी सरकार 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती, तो क्या वहां राष्ट्रपति शासन के माध्यम से BJP राज करना चाहती है ?

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