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निर्जलाएकादशी व्रत क्यों किया जाता है ? जानिए, इसके महत्व…

निर्जलाएकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस एकादशी को “#भीमसैनी एकादशी” भी कहा जाता है। इस दिन व्रती सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक पानी नहीं पीते है। कहते हैं कि पानी पीने से यह व्रत टूट जाता है।

निर्जला एकादशी का व्रत रखने वाले को 24 एकादशी के व्रतों के बराबर पुण्य लाभ मिलता है। इस व्रत को निष्ठा पूर्वक रखने से भगवान विष्णु की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।व्यक्ति की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। जीवन में चल रही समस्यायों का भी अंत होता हैं। घर सुख समृद्धि व धन धान्य से भरा रहता है।

भगवानविष्णु को प्रिय हैं यह व्रत !!!

यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु को यह व्रत सबसे ज्यादा प्रिय है।इसीलिये इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु का मंत्र “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इसके अलावा इस एकादशी पर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी शुभ फल देता है।!!!

कथा

जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में ‘वृक’ नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा?

पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे।

इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है।।।।

द्वितीयमहत्व!!

एक बार महर्षि व्यास पांडवो के यहाँ पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते है और मुझसे भी व्रत रख्ने को कहते है परन्तु मैं बिना खाए रह नही सकता है इसलिए चौबीस एकादशियो पर निरहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताईये जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाये। महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भ उसकी भूख शान्त नही होती है महर्षि ने भीम से कहा तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत मे स्नान आचमन मे पानी पीने से दोष नही होता है इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गया तब पांडवो ने गंगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दुर की। इसलिए इसे #भीमसेन एकादशी भी कहते हैं।।।

साभार- हिमालय पुत्री ज्योत्सना जी।।

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