उत्तराखण्ड
हल्द्वानी- शहर में अब भी माही जैसे कई महिलाओं के जाल में फंसे व्यापारी, अपना दर्द दफन कर भटक रहे रसूखदार
हल्द्वानी का अंकित चौहान हत्याकांड उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि यह हत्याकांड को फिल्मी अंदाज में अंजाम दिया गया है। जिसकी मुख्य आरोपी माही उर्फ डॉली है, जिसने अपनी नौकरानी और आशिक दीप कांडपाल को प्रभाव में लेकर सपेरे की मदद से बॉयफ्रेंड अंकित चौहान को नाग से डसवाकर मौत के घाट उतार दिया। जिसके बाद मुख्य हत्यारोपी माही समेत चार लोग फरार हो गए, फिर समय समय पर पुलिस ने माही, दीप और सपेरे को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। जिसके बाद से माही उर्फ डॉली को सोशल मीडिया में बिशकन्या से लेकर नागिन तक कई नाम से जाना जा रहा है।
पुलिस और पत्रकारों द्वारा माही का बैकग्राउंड खंगाला गया तो कई रसूखदार और सफेदपोश माही के दीवाने निकले। हत्या के आरोप में माही भले ही सलाखों के पीछे चली गई हो, पर माही जैसी कई महिलाएं हल्द्वानी में अपना जाल बिछाए हुए है। इन महिलाओं के जाल में शहर के कई सफेदपोश, रसूखदार और क्रशर स्वामी कैद हैं। माही तो यूं ही बदनाम हो गई क्योंकि उसका पर्दा उठ गया, अभी तो कई चेहरों से पर्दे उठने बाकी हैं। सूत्रों की माने तो हाल ही में एक नामी क्रशर स्वामी को एक महिला द्वारा ब्लैकमेल कर करोड़ो की रकम वसूली गई है।
कुछ ठेकेदारों द्वारा अधिकारियों से अपने काम निकलवाने के लिए भी इन महिलाओं का सहारा लिया जाता रहा है। साथ ही महिलाओं के एजेंट शहर के मुख्य व्यापारियों पर नज़र रखते हैं और उसकी पूरी सूचना महिलाओं तक पहुंचाने का काम करते हैं, सोची समझी रणनीति के तहत उस व्यापारी को साजिशन टारगेट बनाकर महिला अपने प्यार के जाल में फंसाती हैं, फिर क्या महिला द्वारा शारीरिक संबध बनाकर ब्लैकमेल का धंधा शुरू हो जाता है।
इन महिलाओं के कई ग्रुप हल्द्वानी में सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं, जिनकी न कोई नौकरी न ही कोई व्यापार, फिर भी शौक करोड़पतियों से कम नहीं हैं। ब्रांडेड कपड़े, हाथ में एप्पल का फोन और चमचमाती कार आम आदमी के जहन में संदेह तो पैदा ही करेगी। सोशल मीडिया के माध्यम से भी यह महिलाएं अपना शिकार तलाशती नज़र आ जायेगी। इन दिनों हल्द्वानी में गोल्ड डिगर मानसिकता की महिलाओं के कई ग्रुप सक्रिय हैं, उनके कब्जे में भी ऐसे व्यापारी या राजनैतिक लोग हैं, महिलाएं उनसे अभी तक अच्छी खासी रकम डकार चुकी हैं, पर वह शिकार बने लोग अपना दर्द सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें समाज का डर भी सताने लगता है। कई व्यापारी तो अपना दर्द और अपने ही कई राज सीने में दफन कर भटक रहें हैं।