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उत्तराखण्ड

इस आईएएस का तुगलकी फरमान… होमगार्ड को दिखाई अपनी कलम की ताकत।

कहते है न किसी भी क्षेत्र में जो सबसे कमजोर होता है उसको दबाने का किया जाता है। कुछ इसी तरह चमोली जिलाधिकारी द्वारा एक होमगार्ड को तीन साल के लिए सस्पेंड कर दिया।

अफसरशाही का बुखार इतना चढ़ चुका था, कि एक मामूली होमगार्ड को अपनी हनक दिखाते हुए सस्पेंड कर डाला। प्रदेश में अफसरशाही पहले से ही हावी रही है, पर चमोली जिलाधिकारी के इस निर्णय ने प्रदेश भर के सभी आईएएस अधिकारियों को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

आम आदमी के जहन में सिर्फ यही सवाल है कि अगर बेहतर शिक्षा लेने से इस तरह का व्यवहार हो जाता है, तो उससे अच्छा की उनका बच्चा अनपढ़ ही अच्छा है। जिसकी कोई सिफारिश नही होती वह होता है होमगार्ड, जिसे प्रतिदिन के हिसाब से मानदेय मिलता है।

होमगार्ड की गलती यह थी कि उसने जिलाधिकारी महोदया के लाडले को पार्क में नहीं जाने दिया, क्योंकि इस दशा में कोविड नियमो का पालन नहीं किया जा रहा था। कोविड गाइडलाइन के अनुसार पार्क में जाना यानी प्रवेश करना पूर्णतया प्रतिबंधित था, बच्चे को रोकना होमगार्ड को भारी पड़ गया।

बच्चे को रोकने से तिलमिलाई महोदया ने आक्रोश में ऐसा निर्णय ले लिया, कि वह गरीब के घर का चूल्हा अब संकट में है। मजबूर होमगार्ड को इस बात का जरा सा भी आभास नहीं था कि जिलाधिकारी महोदया के बच्चे को रोकना उसकी नौकरी पर आ जायेगी। जिलाधिकारी महोदया का तुगलकी फरमान अब उन्हें खुद मुंह चिढ़ाने लगा है।

पीड़ित होमगार्ड जवान अब अपनी बहाली के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर है। होमगार्ड जवान को इस तरह हटाये जाने पर प्रदेश भर के होमगार्ड जवानों में आक्रोश है, उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि यह पूरा प्रकरण अन्यायपूर्ण है। हालांकि जिलाधिकारी महोदया की ओर से कहा गया है कि यह मामला पुराना है, पर मामला अगर पुराना भी है तो अपनी कलम की ताकत आख़िर गरीब होमगार्ड पर ही क्यों…?

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