गढ़वाल
तस्वीरें सच बयां करती है, रोज जान जोखिम में डाल स्कूल जाते है 20 से अधिक बच्चे
आजादी के बाद भी आज कई गांवों मे बिजली, पानी, सडक़ नहीं पहुंची है। सरकार लाख दांवे कर ली लेकिन आये दिन सोशल मीडिया में फोटो और वीडियो सरकार के कागजी विकास को खोखला कर देते है। अब एक ताजा मामला आया है राजधानी देहरादून के तोलिया काटल गांव की। जहां 11वीं में पढऩे वाली छात्रा संगीता के घर से स्कूत तक जाना जान हथेली पर रखने से कम नहीं है। लेकिन सरकार को कहा इन छात्रों की सुध। सरकारी आयी और गई लेकिन कई गांव आज भी वैसे ही है जैसे अग्रेंज छोड़ के गये थे।
हां चुनाव के समय नेता जरूर इन गांवों में पहुंच जाते है। वादे के साथ कि इस बार आपका रास्ता पक्का, साथ में बिजली-पानी भरपूर मिलेंगी। लेकिन चुनाव जीतने के बाद वहीं सपने वही खाट वाली कहावत दोहरायी जाती है। तस्वीर में आपको दिख रही छात्रा समेत रगडग़ांव इंटर कॉलेज के लिए सुनील राणा, नितिन और अभिनव पंवार समेत करीब 20 स्कूल बच्चों को रोजाना ऐसे ही नदी पार करके जाना पड़ता है क्योंकि पुल ही नहीं है। अब आज के दौर में पढ़ता भी जरूरी है। नहीं तो सरकार कैसी कहेगी बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ। लेकिन ये बेटियां कैसे स्कूल तक पहुंच रही इसके देखने वाला कोई नहीं है।
राजधानी से करीब 22 किमी दूर मालदेवता के हिलांसवाली, सौंदणा क्षेत्र के लोगों को मालदेवता पुल से करीब दस किमी दूर है। यह रास्ता कच्चा और खतरनाक है। ऐसे में सौंदणा, चिफल्डी, गवाली डांडा, तौलिया काटल गांव के लोगों के लिए सौंग नदी पर पुल नहीं है। सौंग नदी के पार टिहरी जिला और इस तरफ देहरादून की सीमा है।
हर साल बरसात में यह नदी उफान पर आ जाती है ऐसे में ग्रामीणों ने नदी पार करने के लिए ट्रॉली लगाई है। गांव की ग्राम प्रधान रेखा देवी बताती हैं कि करीब 10 साल पहले पुल बनाने का सिलसिला शुरू हुआ था जिसमें करीब 40 मीटर स्पान पर पुल बनना था। जैसे काम शुरू होने वाला था तो नदी का स्पान बढ़ गया। जिसके बाद करीब 80 मीटर तक हो गया है। लेकिन पिछले साल सौंग बांध परियोजना में यह क्षेत्र भी आ गया। सिंचाई विभाग के अंतर्गत यह क्षेत्र आ गया है। जिसके बाद इसकी विस्थापन की अधिसूचना जारी हो चुकी है। ऐसे मेें यहां के ग्रामीणों को झटका लगा गया। विकास कार्यों पर रोक लग गई, ऐसे में ट्राली से नदी पार करना गांववालों की मजबूरी बन गई।