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उत्तराखण्ड

हल्द्वानी : किसान मंच ने राइट टू हेल्थ बिल का मसौदा विधानसभा में सरकार और विपक्ष से लाने की मांग…

उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली, किसान मंच ने ‘राइट टू हेल्थ बिल’ का मसौदा मीडिया के सामने किया पेश ,सदन में पक्ष विपक्ष से की स्वास्थ्य को लेकर बिल लाने की मांग।

हल्द्वानी।
हल्द्वानी में किसान मंच उत्तराखंड ने 2 नवंबर 2025 को हल्द्वानी में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रदेश की चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था पर गहरा रोष व्यक्त किया और “राइट टू हेल्थ बिल” लाने की मांग उठाई। मंच ने बताया कि “ऑपरेशन स्वास्थ्य” नामक राज्यव्यापी अभियान चौखुटिया से शुरू होकर अब पूरे उत्तराखंड में फैलाया जाएगा। किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष व ऑपरेशन स्वास्थ्य के जनक कार्तिक उपाध्याय ने कहा कि राज्य के अधिकांश सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) केवल ‘रेफरल सेंटर’ बनकर रह गए हैं और IPHS मानकों पर संचालित नहीं हो रहे। चौखुटिया CHC (30 बिस्तरों का अस्पताल) में वर्तमान में केवल चार MBBS डॉक्टर हैं, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं होने के कारण आपात मरीजों को अन्य अस्पताल रेफर किया जाता है और कई बार वे रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। वित्तीय संसाधन होने के बाद भी हाड़कोल अस्पतालों में कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। उक्त स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की कमी की निरंतरता के कारण, आधिकारिक रिपोर्टों में भी भारी डॉक्टरों की कमी दिखी है: CAG रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के CHC में डॉक्टरों का 94% और उप-जिला अस्पतालों में 45% तक का अभाव है। ग्रामीण अंचलों में न तो विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, न उपकरण या दवाइयां, और अधिकतर भवन बनकर अलंकरण बन गए हैं। यही कारण है कि लोग इलाज के लिए 100 किमी से अधिक दूरी तय करने को मजबूर हैं।

मौलिक अधिकार: “स्वास्थ्य का अधिकार”

किसान मंच ने कहा कि स्वास्थ्य मौलिक अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन का अधिकार सुरक्षित है, और सुप्रीम कोर्ट ने इसे “स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार” माना है। न्यायशास्त्र में भी कहा जाता है कि “स्वास्थ्य का अधिकार, जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है”। इसलिए हर नागरिक को निःशुल्क और गुणवत्तापूर्ण इलाज उपलब्ध कराना राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है। मंच ने इस आधार पर राज्य सरकार से तत्काल ‘राइट टू हेल्थ बिल’ लाने की अपील की, ताकि स्वास्थ्य सेवा को कानूनी तौर पर हर नागरिक का अधिकार घोषित किया जा सके।
नेताओं के बयान और अगली कार्रवाई
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंच के नेताओं ने कड़े शब्दों में सरकार की नीतियों की आलोचना की। प्रदेश अध्यक्ष कार्तिक उपाध्याय ने कहा, “उत्तराखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर में है। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद ग्रामीणों को बुनियादी इलाज से वंचित रखा जा रहा है। चौखुटिया, द्वाराहाट और सुयालबाड़ी जैसे अस्पताल केवल कागजों में सक्रिय हैं, जमीन पर वे महज़ रेफरल सेंटर बन गए हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि आंदोलन किसी दल विशेष का नहीं, बल्कि “प्रत्येक नागरिक के स्वास्थ्य अधिकार की आवाज़” है। किसान मंच संरक्षक पीयूष जोशी ने ललकुआं CHC का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां एक-एक X-ray मशीन केंद्र सरकार से माँगी जा रही है, जबकि सरकारी विज्ञापनों में स्वास्थ्य पर हजार करोड़ से अधिक खर्च होने का दावा किया जा रहा है। उन्होंने राज्य स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के उस बयान पर “गंभीर चिंता” जताई जिसमें कहा गया था कि पहले लोग अस्पताल में डॉक्टर को ढूंढते थे, अब डॉक्टर मरीज को ढूंढ रहे हैं।

किसान मंच के रदेश संरक्षक पीयूष जोगी ने कहा, “अगर धन सिंह रावत जी सचमुच उत्तराखंड के स्वर्णिम भविष्य की बात करना चाहते हैं, तो वह ‘राइट टू हेल्थ बिल’ तुरंत लाएं, उन्होंने कहा कि धन सिंह रावत जी ने एक बयान में कहा था कि “पहले उत्तराखंड में मरीज डॉक्टर ढूंढते थे आज डॉक्टर मरीज को ढूंढ रहे हैं” उन्होंने धन सिंह रावत जी से उन अस्पतालों के नाम का खुलासा करने की भी मांग की जहां डॉक्टर मरीजो को डॉक्टर ढूंढ रहे हैं जबकि प्रदेश में स्थिति इसके विपरीत है जहां आज भी अस्पताल में मरीज डॉक्टर के बिना इलाज को तरस रहे हैं।” उन्होंने लालकुआं CHC का उदाहरण देते हुए कहा कि लालकुआं में स्वास्थ्य सुविधाएँ बहाल करने के लिए पूर्व प्रधानाचार्य गोविंद बल्लभ भट्ट न्यायालय गए तो उन्होंने उत्तराखंड मानवअधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाया था परंतु उसके बाद भी बड़ा शर्म का विषय है कि लालकुआं में सीएचसी में एक-रे मशीन की मांग सेंचुरी के सीएसआर फंड से की जा रही है जबकि सरकार 1000 करोड़ विज्ञापनों में केवल प्रचार में खर्च कर रही है ,जबकि यह बजट सरकारी कार्यों व स्वास्थ्य चिकित्सा एवं शिक्षा में लगना चाहिए था जो आज विज्ञापनों में खर्च हो रहा है।

प्रदेश उपाध्यक्ष कमल तिवारी ने अल्मोड़ा जिले की दयनीय स्वास्थ्य स्थिति की ओर ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने कहा, “चौखुटिया में जिस तरह आंदोलन शुरू हुआ, उसी प्रकार अल्मोड़ा जिले में भी व्यापक जनआंदोलन की तैयारी की जा रही है। जल्द ही पूरे जिले की जनता को साथ लेकर बड़ा आंदोलन किया जाएगा।”

छात्र नेता संजय जोशी ने कहा कि राइट टू हेल्थ बिल पर सभी विधायक (विपक्ष-पक्ष) मिलकर आगामी विधानसभा सत्र में चर्चा करें और इसे कानूनी रूप से लागू करें। अन्यथा पूरे प्रदेश में ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’ आंदोलन और तेज़ होगा, जिसमें छात्र भी किसान मंच के साथ खड़े रहेंगे।
किसान मंच ने यह भी घोषणा की है कि आने वाले दिनों में “उत्तराखंड ऑपरेशन स्वास्थ्य” आंदोलन जिला-स्तर तक बढ़ाया जाएगा। 9 नवंबर (राज्य स्थापना दिवस) को नैनीताल जिले के सुयालबाड़ी CHC पर धरना प्रदर्शन के साथ शुरूआत होगी, तत्पश्चात पूरे कुमाऊँ में अभियान चलेगा। मंच ने दोहराया कि यह आंदोलन पूरी तरह गैर-राजनीतिक है और जनहित को केन्द्र में रखकर चलाया जाएगा।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मंच ने सरकार से आग्रह किया है कि अगले विधानसभा सत्र में ‘राइट टू हेल्थ बिल’ को प्राथमिकता से पास किया जाए ताकि उत्तराखंड में स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार का दर्जा मिल सके। जैसा कि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है, यदि सरकार ठोस कदम नहीं उठाती है तो स्वास्थ्य का मुद्दा 2027 के चुनावों में प्रमुख जनलोकआंदोलन का मुद्दा बन सकता है।

प्रस्तावित ‘राइट टू हेल्थ बिल’ के मुख्य प्रावधान :
मंच ने बताया कि उनका ड्राफ्ट बिल राजस्थान के 2022 के कानून के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें राज्य के सभी निवासियों को निम्न प्रावधान देने का प्रस्ताव है:

  1. निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएँ: प्रत्येक निवासी को सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों (सरकारी अस्पतालों) में नि:शुल्क OPD/IPD सेवाएँ, आपात चिकित्सा, आवश्यक दवाइयां और डायग्नोस्टिक सुविधाएँ मिलेंगी।
  2. निजी संस्थानों की जिम्मेदारी: निजी अस्पतालों को आपात स्थिति में इलाज करना अनिवार्य होगा। बिल के तहत सरकार उन संस्थानों का निर्धारित दरों पर उपचार व्यय समयबद्ध (उदाहरण 45 दिनों में) चुकाएगी।
  3. आपातकालीन इमरजेंसी: किसी भी पंजीकृत अस्पताल द्वारा आपात स्थिति में इलाज से इनकार नहीं किया जा सकेगा। (राजस्थान कानून के समान, सभी सुविधाओं को अग्रिम भुगतान के बिना आपात सेवा प्रदान करनी होगी।)
  4. निगरानी व शिकायत प्राधिकरण: राज्य और प्रत्येक जिले में “राइट टू हेल्थ अथॉरिटी” गठित की जाएगी, जो शिकायत निवारण, अनुदान/रिइम्बर्समेंट की समीक्षा, मानक संचालन प्रक्रियाएं तय करने और वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी निभाएगी। लाभार्थी 1800 हेल्पलाइन या पोर्टल पर 24×7 शिकायत दर्ज करा सकेंगे; प्राधिकरण 30 दिनों में निष्पादन आदेश देगा
  5. दंडात्मक प्रावधान: कोई भी क्लिनिकल एस्थैब्लिशमेंट आपात सेवा देने से जानबूझकर इनकार नहीं करेगा; ऐसा करने पर भारी जुर्माना, लाइसेंस निलंबन/रद्दीकरण और सार्वजनिक शर्मसार करने का प्रावधान होगा।
  6. वित्तपोषण और पारदर्शिता: सरकार ‘राइट टू हेल्थ’ के लिए वार्षिक बजट निर्धारित करेगी और स्थिरीकरण कोष बनाएगी। केंद्रीय योजनाओं (जैसे PM-JAY) के साथ तालमेल से खर्च साझे होंगे। राज्य/जिला अथॉरिटी को त्रैमासिक व वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी, जिसमें भुगतान, शिकायतों व निष्पादन का विवरण हो।
  7. किसान मंच का कहना है कि इन प्रावधानों के द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में सुधार होगा और ग्रामीण-पहाड़ी क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा सुगम होगी। राजस्थान के अनुभव से यह भी संकेत मिलता है कि ऐसा कानून पारित होने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूती मिलेगी तथा जेब पर खर्च कम होगा।
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