उत्तराखण्ड
जनसेवा के साथ पारम्परिक कला में माहिर हैं तारा, ऐसी लोक कलाकृतियां जिनसे आप भी हो जाएंगे मंत्रमुग्ध।
अक्सर कहा जाता है कि रचनात्मकता की कोई उम्र या सीमा नहीं होती। क्योंकि यह ऐसा क्षेत्र है जहां कलाकार किसी भी मामूली चीज को कला में बदल सकता है। कला और कलाकार की क्रिएटिविटी किसी भी चीज को कलात्मक रुप दे सकती है। उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति के विलुप्त हो जाने की आशंका के बीच कई युवा अपने मजबूत इरादों के साथ इसे नया आयाम दे रहे है, कुछ ऐसा ही कर रही है एलआईयू हल्द्वानी में नियुक्त तारा नेगी।
मूल रुप से अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट की रहने वाली तारा नेगी के पिता के शिक्षक होने के कारण इनका बचपन और शिक्षा-दीक्षा चम्पावत में हुई है। वहीं वर्तमान में तारा नेगी हल्द्वानी में अपने परिवार के साथ रहती है और यहाँ रहकर शौक़िया तौर पर ऐपण कला का कार्य कर रही हैं। अपनी इस कला के माध्यम से तारा नेगी पूजा की चौकी, कपड़े पर ऐपण, पूजा थाल, कप, आदि में ऐपण को उतारकर नया लुक दे रही है।
जानकर हैरानी होगी कि तारा नेगी पुलिस विभाग की व्यवस्तता भरी नौकरी से समय निकालकर भी ऐपण लोक कला को अपनी मेहनत-लगन से नए आयाम देने का काम करती हैं। तारा नेगी का कहना है कि बचपन से ही पहाड़ी संस्कृति के प्रति उनका काफी रुझान रहा है। जिसके चलते उनका कलाकृति बनाने में रुझान बढ़ता चला जाता है।
दरअसल कुंभ ड्यूटी हरिद्वार से वापस आने पर वह कोविड ग्रस्त हो गई थी, इस दौरान हल्द्वानी में रहते हुए क्वारंटाइन अवधि में उनका मन विचलित और आशंकित न हो इसलिए मन को शांत और नियन्त्रित रखने के लिए उनके मन में ऐपण कला कार्य प्रारम्भ करने का विचार आया। जिसके बाद से तारा का लए सफर विलुप्त हो रही संस्कृति को संरक्षित करने एवं बढ़ावा देने के उद्देश्य से आगे चल पड़ा। तारा का कहना है कि वह ऐपण के जरिए लोक संस्कृति को बचाने का एक छोटा सा प्रयास कर रही है।
तारा हमेशा अपने काम के प्रति पूरी निष्ठा और ईमानदारी से पेश आती हैं यही वजह है कि कोविड काल में पॉजिटिव आने वाले लोगो की कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के साथ – साथ शहर में हर बड़ी ओर छोटी घटनाओं की सूचना को पहुँचाने का काम भी तारा के द्वारा किया गया था। तारा का मानना है किसी किसी काम को पूरी निष्ठा से किया जाय तो वो जरूर सफल होता है।