आध्यात्मिक
बेबाक़, निष्पक्ष और समाजवादी.. पढ़िए… महंत नरेंद्र गिरि की वो खास बातें, जो उन्हें दूसरे संतों से बनाती थी अलग…
देश भर के साधु संतों के मुखिया महंत नरेंद्र गिरि पिछले दो दशक से लगातार सुर्खियों में रहे हैं और सोमवार से उनका नाम फिर सुर्खियों में है लेकिन दुखद वजह से। उनकी संदिग्ध मौत का मामला जांच के दायरे में है। सभी स्तब्ध हैं और जानना चाह रहे हैं कि आखिर सच क्या है। इसके साथ ही लोगों में नरेंद्र गिरि के बारे में और जानने की उत्सुकता भी है। आइए जानते हैं कि नरेंद्र गिरि का जन्म कहां हुआ, मूल रूप से कहां के रहने वाले थे महंत नरेंद्र गिरि और उनके परिवार में कौन-कौन हैं !
नरेंद्र गिरि प्रयागराज में ही गंगापार इलाके में सराय ममरेज के छतौना गांव के मूल निवासी थे। उनकाअसली नाम नरेंद्र सिंह था। करीबी लोगों ने बताया कि उनके पिता भानु प्रताप सिंह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य रहे हैं। नरेंद्र ने स्थानीय बाबू सरजू प्रसाद सिंह इंटर कालेज से हाई स्कूल की पढ़ाई की थी।
महंत नरेंद्र गिरि चार भाइयों में दूसरे नंबर पर थे। बाकी तीन भाई अशोक कुमार सिंह, अरविंद कुमार सिंह और आनंद सिंह हैं। उनके दो भाई शिक्षक हैं जबकि तीसरे भाई के बारे में बताया गया कि वह होमगार्ड विभाग में हैं। संन्यासी जीवन में आने के बाद से उनका गांव आना जाना तो नहीं रहा लेकिन गांव के लोगों से लगाव बना रहा, इलाके में होने वाले प्रमुख कार्य़क्रम में वह शिरकत करने जाते थे। प्रतापपुर के स्कूल में हुए शैक्षिक आयोजन में वह 2006 और 2010 में बतौर मुख्य अतिथि शरीक हुए थे।
महंत नरेंद्र गिरि स्वभाव के दयालु मृदुभाषी होने के साथ ही हर प्रकार की समस्या का समाधान निकालने को तत्पर रहते थे हरिद्वार कुंभ आयोजन के द्वारा उन्होंने हमेशा संत समाज की आवाज को बुलंद करने का काम किया उनके दरबार में आया हर व्यक्ति कभी खाली नहीं जाता था वह हर छोटे बड़े व्यक्ति की मदद करते थे, सभी अखाड़ों के बीच सामंजस्य बैठाने का काम हमेशा से महंत नरेंद्र गिरि करते हुए आए थे।
राम मंदिर को लेकर महंत नरेंद्र गिरि ने अपने जीवन में कई काम किए के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों को लेकर उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि राम मंदिर का समर्थन पहले किसी पार्टी ने नहीं किया। अब ये उनकी दिखावटी मजबूरी है। उन्हें पता चल गया है कि मुस्लिमों की तरह हिंदू भी एक हो रहा है, तो ये उनकी मजबूरी है।
अगर महंत नरेंद्र गिरि के मौत के पहले दिए गए इस बयान को किसी राजनीतिक चश्मे से न देखते हुए तटस्थ रूप से नजर डालेंगे। तो, ये साफ नजर आएगा कि महंत नरेंद्र गिरि ने मौत से पहले सनातन धर्म और राजनीति के बारे में जो कहा- वो आज की सच्चाई है!
हालांकि अपनी मौत से पहले महंत नरेंद्र गिरी ने साधु-संतों को एक करने के साथ ही अपने शिष्यों को अच्छी शिक्षा देने के अलावा गरीब तबके के लोगों की मदद की थी। अखाड़े के सदस्यों के अलावा महंत नरेंद्र गिरि हमेशा से ऐसे लोगों की मदद करते थे जो उनके दरबार में खाली हाथ टूटे मन से जाता था। महंत का मानना था कि संसार में हर कोई एक समान है वही वह अपने भक्तों के साथ ही सभी को एक जैसा समझते थे उनका मन हमेशा अपने भक्तों के कल्याण और अपने शिष्यों की शिक्षा दीक्षा में लगा रहता था।