उत्तराखण्ड
धर्मसंकट में भाजपा… उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखण्ड को मिलेगी कमान…
उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री को अपना कार्यकाल खत्म करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. प. नारायण दत्त तिवाड़ी का कार्यकाल पूरे पांच साल रहा, उनके अलावा कोई भी मुख्यमंत्री पांच साल पूरे ही नही कर पाए…
जब-जब भाजपा द्वारा दिल्ली हाईकमान ने निर्देश पर मुख्यमंत्री बदले गए हैं तब-तब सरकार रिपीट नही हुई है। उत्तराखण्ड भाजपा में भी त्रिवेन्द्र रावत के बाद तीरथ रावत अब नए मुख्यमंत्री की तलाश में जुट गए हैं। फिलहाल अब वर्तमान विधायको में से ही एक को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।
मुख्यमंत्री की दौड़ में सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, धन सिंह रावत और यशपाल आर्य का नाम अभी तक चर्चाओं में सम्मलित है। वरिष्ठता व जातीय समीकरण की बात करें तो सतपाल महाराज व हरक सिंह रावत दौड़ में है। धन सिंह रावत पहली बार के विधायक है, साथ ही मुख्यमंत्री पद के लिए उसकी राह आसान नहीं है।
सूत्रों की माने तो सतपाल महाराज का नाम लगभग फाइनल हो गया है, वरिष्ठता के साथ साथ वह संघ प्रमुख मोहन भागवत की पसंद भी हैं। जैसे कि उत्तर प्रदेश में ठाकुर, ब्राह्मण व दलित के समीकरण साधने के लिए योगी को मुख्यमंत्री बना दिया गया, ठीक उसी तरह जातीय समीकरण को ठीक बैठाने के लिए सतपाल महाराज को मुख्यमंत्री बनाना तय माना जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ व उत्तराखण्ड की कमान अब सतपाल महाराज को मिल सकती है। साधू-संतो के मुख्यमंत्री बनने से सभी विरोधी सुर अपने आप शांत होने लगते है, क्योंकि संतो की कोई जाति नहीं होती है। इसीलिए समाज का हर वर्ग उन्हें स्वीकार कर लेता है।
इसी समीकरण के चलते हाईकमान ने योगी की तर्ज पर महाराज को उत्तराखण्ड की कमान देने का मन बना लिया है। आने वाले नए मुख्यमंत्री पर चुनौतियों का पहाड़ है, आगामी विधानसभा चुनाव के अलावा हरिद्वार कुंभ का जिन्न भी है, वह कब बाहर आ जाये पता नहीं…