उत्तराखण्ड
देहरादून : पहाड़ी राज्य मिलने के 24 साल बाद भी नेताओं को कुमाऊं गढ़वाल की राजनीति से नहीं है फुर्सत , राजनेताओं ने देहरादून से लेकर दिल्ली तक क्षेत्रवाद की राजनीति को दी हवा , क्या सच में हो रहा है क्षेत्रवाद या कुछ राजनेताओं की महत्वाकांक्षा परवान चढ़ने लगी है…
उत्तराखण्ड में कुछ लोग राजनैतिक अस्थिरता फैलाने का मंसूबा पाले हुए हैं। उनकी ओर से भाजपा हाईकमान और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर लगातार निराधार आरोप लगाए जा रहे हैं। झूठ, प्रपंच और षड़यंत्र को माध्यम बनाकर वो हर हाल में सरकार को अस्थिर करने के प्रयास कर रहे हैं। साजिश में शामिल लोग क्षेत्रवाद को हवा देकर गढ़वाल की उपेक्षा का मुद्दा उठा रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि मौजूदा समय में विकास को लेकर गढ़वाल और कुमाऊं मण्डल के बीच गजब का संतुलन बना हुआ है, इस पहाड़ी राज्य को बने 24 साल से अधिक समय हो गया है लेकिन यहां के राजनेता कुमाऊं और गढ़वाल के बीच खाई खोदने में लगे हुए है उनको राज्य के विकास से कोई सरोकार नहीं है सिर्फ अपनी अति महत्वकांक्षा को पाले हुए है और कुमाऊ और गढ़वाल के बीच मतभेद पैदा कर रहे है।
सरकार और संगठन में प्रतिनिधित्व देखें तो गढ़वाल को कुमाऊं पर तरजीह दी गई है। गढ़वाल और कुमाऊं की विकास की अगर बात की जाए तो गढ़वाल में चार धाम यात्रा को जोड़ने के लिए जो ऑल वेदर रोड का निर्माण हो, वह मील का पत्थर साबित हो रही है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन चारधाम यात्रा में पर्यटन से जुड़े व्यवसाय की आर्थिकी को मजबूत करेगा। ऋषिकेश एम्स में गढ़वाल के तमाम मरीज को तत्काल इलाज की सुविधा मिल रही है। ऐसे कई विकास के कार्य हैं, जो गढ़वाल मंडल में लगातार किए जा रहे हैं।
राजधानी देहरादून होने से गढ़वाल के शासन स्तर से सारे काम तेजी से होते हैं। वहीं अगर बात की जाए कुमाऊं की तो यहां पर जो ऑल वेदर रोड की तरह कोई बड़ा प्रोजेक्ट नहीं है। कुमाऊं के पहाड़ लिए आजतक कोई रेल लाइन नही बिछाई गई है, यह कहना सिर्फ कुमाऊं क्षेत्र में विकास को सीएम पुष्कर धामी विकास को गति दे रहे हैं वह पूरी तरह से गलत है।
गढ़वाल और कुमाऊं दोनों ही जगह का बराबर संतुलन देकर सीएम पुष्कर सिंह धामी लगातार दिल्ली तक जाते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सभी विभागों के मंत्रियों से राज्य के विकास के लिए प्रयास करते हैं। उत्तराखण्ड में गढ़वाल और कुमाऊं दो मण्डल हैं। राजनैतिक तौर पर कांग्रेस और भाजपा समेत सभी दल इन मण्डलों के बीच संतुलन बनाकर ही अपनी रणनीति तैयार करते आए हैं। सरकार किसी भी दल की हो अक्सर होता यह है कि मुख्यमंत्री यदि कुमाऊं से तो सत्ताधारी दल का अध्यक्ष गढ़वाल से होता है।
गढ़वाल से मुख्यमंत्री होने पर संगठन के प्रदेश अध्यक्ष पद पर इसी तरह की तवज्जो कुमाऊं को दी जाती है। कैबिनेट में भी दोनों मण्डलों को तकरीबन बराबर प्रतिनिधित्व देकर संतुलन बैठाया जाता है। मौजूदा समय में भी लगभग यही स्थिति है। बावजूद इसके विरोधी तत्व आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी सरकार और संगठन में कम प्रतिनिधित्व देकर गढ़वाल मण्डल की उपेक्षा कर रही है। आरोप कुछ भी लगाये जाएं लेकिन आंकड़ों से तस्वीर साफ हो जाती है। धामी सरकार में मुख्यमंत्री के अलावा कुल 11 मंत्री बनाए जा सकते हैं। सरकार में कुल 7 मंत्री हैं जबकि चार पद रिक्त हैं। तीन पद सरकार गठन के वक्त से ही रिक्त रखे गए थे, जबकि एक पद कैबिनेट मंत्री चन्दनराम दास के निधन से खाली हुआ है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कैबिनेट में जो 7 मंत्री हैं, उनमें से पांच मंत्री सतपाल महाराज, प्रेमचन्द अग्रवाल, धन सिंह रावत, गणेश जोशी और सुबोध उनियाल गढ़वाल मण्डल से हैं, जबकि विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खण्डूड़ी भी गढ़वाल क्षेत्र (कोटद्वार विधानसभा) से ही हैं। पैतृक गांव को आधार बनाएं तो कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा भी गढ़वाल से ही माने जा सकते हैं। पार्टी संगठन की बात करें तो प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट न सिर्फ प्रदेश भाजपा की कमान संभाले हुए हैं बल्कि उन्हें राज्यसभा का सांसद भी बनाया गया है। उनके अलावा, नरेश बंसल (देहरादून) और कल्पना सैनी (रुड़की, हरिद्वार) गढ़वाल मण्डल के ही निवासी हैं, जो संसद के उच्च सदन राज्यसभा में उत्तराखण्ड का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि प्रतिनिधित्व के मामले में गढ़वाल की उपेक्षा का आरोप सरासर बेबुनियाद है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की बात करें तो वह अपने सत्ताधारी दल के विधायकों का बराबर मान, सम्मान और आदर करते हैं, यहां तक कि विपक्ष के विधायकों के लिए भी उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। किसी भी विधानसभा क्षेत्र के विकास को लेकर धामी सत्ता पक्ष और विपक्ष का भेद कभी नहीं करते।