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उत्तराखण्ड

देहरादून: विद्यालय मर्जर योजना संविधान और शिक्षा अधिकार अधिनियम के खिलाफ : नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य

देहरादून: उत्तराखंड में विद्यालयों के मर्जर अथवा बंद करने की सरकारी योजना को लेकर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने इस फैसले को शिक्षा विरोधी करार देते हुए कहा कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21-A, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act 2009) और नीति-निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 46 की स्पष्ट अवहेलना है।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में क्लस्टर स्कूल की परिकल्पना की गई है, जिसका उद्देश्य गुणवत्ता सुधार और संसाधनों का बेहतर उपयोग है, लेकिन इसमें कहीं भी स्कूलों को बंद करने या विलय का प्रावधान नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तराखंड सरकार ने छात्र संख्या कम होने के आधार पर छोटे स्कूलों को नजदीकी बड़े विद्यालयों में मर्ज करने का निर्णय लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को शिक्षा से वंचित करने का रास्ता खोल दिया है।

यशपाल आर्य ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) की धारा 6 राज्य सरकार को यह जिम्मेदारी देती है कि वह प्रत्येक बस्ती के पास एक विद्यालय स्थापित करे। ऐसे में विद्यालयों का बंद होना ग्रामीण बच्चों की शिक्षा में बाधा बनेगा और इससे गांवों में शिक्षा के प्रति अरुचि बढ़ेगी।

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि एक ओर राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में शराब की दुकानों की संख्या बढ़ा रही है, वहीं दूसरी ओर विद्यालयों को बंद कर रही है, जो सामाजिक न्याय की अवधारणा के विपरीत है। छोटे विद्यालय न केवल शिक्षा का केंद्र हैं, बल्कि वे ग्रामीण समाज में आत्मविश्वास, पहचान और सामुदायिक जुड़ाव के स्तंभ हैं।

यशपाल आर्य ने कटाक्ष करते हुए कहा, “आज की सरकार पर वह कहावत सटीक बैठती है कि जरूरी नहीं कि एकलव्य का अंगूठा ही काटा जाए, शिक्षा को महंगा करके भी उसे वंचित किया जा सकता है।” उन्होंने चिंता जताई कि इस निर्णय से न केवल स्कूल बंद होंगे बल्कि बड़ी संख्या में शिक्षकों, प्रधानाचार्यों और शिक्षणेत्तर कर्मियों के पद भी समाप्त हो जाएंगे।

उन्होंने सरकार से तीन प्रमुख मांगें रखीं:

  1. विद्यालय मर्जर नीति को तत्काल प्रभाव से रोका जाए।
  2. हर गाँव में संविधान और RTE अधिनियम के अनुसार स्थानीय स्कूल की गारंटी सुनिश्चित की जाए।
  3. शिक्षा में निजीकरण और केंद्रीकरण की बजाय जनभागीदारी और विकेंद्रीकरण को बढ़ावा दिया जाए।

अंत में उन्होंने शिक्षकों, अभिभावकों और जागरूक नागरिकों से अपील करते हुए कहा कि सरकार के इस निर्णय का विरोध केवल नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं बल्कि समीक्षा की मांग होनी चाहिए, क्योंकि “शिक्षा कोई स्प्रेडशीट नहीं, यह जीवन का पहला अधिकार है जिसे मर्ज नहीं किया जा सकता।”

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