उत्तराखण्ड
युवाओं के भविष्य पर साढ़े साती की चाल, अधिकारियों की इस लॉबी के अड़ंगे से नहीं आ रहे अच्छे दिन…
देहरादून- लोक सेवा आयोग उत्तराखंड द्वारा पिछले चार वर्षों से स्टेट पीसीएस की परीक्षा आयोजित नहीं करवाई गई हैं। इस परीक्षाP को नहीं कराने का उद्देश्य अभी तक राज्य का युवा नहीं समझ पा रहा है, जिनके द्वारा पीसीएस परीक्षा की तैयारी पिछले चार वर्षों से की जा रही हैं। सरकार अगर परीक्षा करवाना भी चाहती है तो राज्य में लाल-फीताशाही कुछ इस तरह हावी है कि वह पीसीएस की परीक्षा आयोजित होने में अड़ंगा डाल देते हैं।
वजह ये भी मानी जा रही है कि डायरेक्ट पीसीएस अफसर बनने से यहां के युवाओं को प्रशासनिक सेवा का मौका मिलेगा, लेकिन प्रमोशन की चाह रखने वाले कुछ अधिकारी ऐसा नहीं चाहते, इसीलिए नायब तहसीलदार पद पर भर्ती व्यक्ति एडीएम तक प्रमोशन की बदौलत ही पहुंचते हैं।
अगर स्टेट पीसीएस की भर्तियां लगातार हर वर्ष होते रहती तो यहां के सैकड़ो युवाओं द्वारा डायरेक्ट पीसीएस परीक्षा पास कर सेवा दे रहें होते। राजनेताओं की सुस्ती और अधिकारियों की चालाकी के चलते प्रदेश के हजारों हुनरमंद युवाओं को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा हैं, खास तौर पर इस परीक्षाओं के नहीं होने से प्रमोटी पीसीएस अधिकारियों को मलाईदार पोस्टिंग मिल रही हैं, एक ही अधिकारी को कई विभागों की जिम्मेदारी दी जाती है। अगर राज्य सरकार के पास पर्याप्त अधिकारी होंगे तो सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतारने में सुविधा होगी।
क्या करें देवभूमि की जनता भी जिसे भगवान समझकर सिंहासन पर बैठाती है, उसे शैतानों की टोली कुछ इस तरह जकड़ लेती हैं कि वह चाहकर भी अपने निर्णय नहीं ले पाता है। पूर्व मुख्यमंत्री को अफसरशाही द्वारा कुछ इस तरह अपने काबू में किया कि पिछले चार वर्षों से पीसीएस की परीक्षा तक नही होने दी, अब नए मुख्यमंत्री से युवाओं की उम्मीद तो हैं, पर उस उम्मीद पर पानी फेरने के लिए पहले से ही अधिकारियों के लॉबी तैयार बैठी रहती हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य यही रहता हैं कि परीक्षा नहीं हो पाए। अब तो इन अधिकारियों की लॉबी युवाओं के भविष्य में शनि बन बैठें हैं, क्या पता अब युवाओं को साढ़े साती की चाल के बाद ही मुक्ति मिले…